प्रफुल्लित मन मेरा - सुरेश बन्छोर

 
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दु:खों के पहाड़ में, न जिसे हो शोक। 
राष्ट्रीय साहित्यकार, आप हैं अशोक।।
 
आपका गरिमामयी, है परिचय अद्भुत। 
गुरु की भूमिका में तो, हैं अहम देवदूत।। 

कुशल नेतृत्व से, हैं सदाचारी व्यक्तित्व। 
सहज सरल, पर हैं प्रबंधकीय अस्तित्व।। 

उच्च कोटि परिचय, ने मन मोह लिया। 
कविता संग सुन्दर, सब तेज टोह दिया।। 

सुरेश मंत्र मुग्ध है, आपके श्रेष्ठ विचारों से।
प्रकाशित करें पट, दिव्य व्यवहारों से।।

आप ही ज्ञान दानी, राष्ट्र भाग्य विधाता।
भारत के सच्चे सपूत, भविष्य निर्माता।। 

आपको नवाजे गये, राष्ट्रीय पुरस्कारों से। 
सृजन नवजागृत है, आलेख उपकारों से।। 

स्वागत आपका है, प्रेषित है बधाइयाँ।
प्रफुल्लित मन मेरा, ले रहीं अंगड़ाईयाँ।।
- सुरेश बन्छोर, हथखोज देमार (पाटन)
 तालपुरी भिलाई (छ.ग.)
 

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