नमन गंगे - कर्नल प्रवीण त्रिपाठी

मातु गंगे हम हृदय से पूजते हैं आप को।
आपका दर्शन हमेशा दूर करता पाप को।
एक डुबकी भी लगा लें पुण्य के भागी बनें।
साफ रख दूर कर दें गंग के हर ताप को।।
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आप गोमुख से चलीं तब थीं बड़ी चंचल-चपल।
मार्ग में दुर्गम हिमालय घाटियाँ करतीं विकल।
धैर्य बिन खोए बढ़ीं तुम प्राप्त करने लक्ष्य को,
सिंधु में हो कर समाहित कर लिया जीवन सफल।
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संग सहेली-सखियाँ लेकर, मंथर गति से आगे बढ़तीं।
कूप-तड़ाग-सरोवर सब में, भूतल-गह्वर नित जल भरतीं।
जीव-जंतु सँग मनुज वनस्पति, खेत-वनों को देतीं जीवन,
देव नदी तुम जन-जन के मन, श्रद्धामय छवि पाकर बसतीं।3
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बसी सभ्यता गंगा तीरे, गाँव-गाँव सँग नगर-नगर।
ईश्वर का वरदान सरीखी, धरती पर माँ गईं उतर।
वैदिक संस्कृति हुई प्रसारित, संग गंग की धार सतत,
सुरसरिता की परम कृपा से, जन-जन करता गुजर-बसर।
- कर्नल प्रवीण त्रिपाठी, नोएडा, उत्तर प्रदेश