नारी (दिग्पाल छंद) - मधु शुक्ला 

 
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कंटक सदैव जिसके पथ को बुहारते हैं,
संसार में उसी को नारी पुकारते हैं।

माँ बाप जन्म देकर जिसको कहें पराया,
उसके लिए खुदा ने कोई न घर बनाया।

सेवा सहायता से संबंध को बनाना ,
कोई नहीं जगत में वामा समान जाना।

सम्मान प्रेम महिला का हाथ थामते कम ,
फिर भी कठोर श्रम से की लक्ष्य प्राप्त हरदम।

दिन रात एक करके व्यक्तित्व वह बनाये ,
उसका नसीब फिर भी मुस्कान दे न पाये।

जब तक चलन जगत में दो रंग का रहेगा,
जग में समानता का तब तक न ध्वज हँसेगा।
- मधु शुक्ला, सतना, मध्यप्रदेश
 

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