नारी - सविता सिंह

 
pic

साम दाम दंड भेद 
कुछ भी नहीं अभेद्य  
सोच समझ कर के 
वार करे नारियाँ।

किस पे लुटाए प्यार 
किस पे  गिरे अंगार 
खुद सोच मन मन  
विचारती  नारियाँ।

अस्मिता पे  यदि कोई 
आँख उठाये फिर  तो
दुर्गा काली रूप चंडी  
धार लेती नारियाँ।

बात जो वतन की हो 
या फिर अमन की हो 
सिंदूर महावर भी 
लुटा देंताीं नारियाँ।

शौर्य की लिखे कहानी, 
बन के  वह मर्दानी, 
लक्ष्मीबाई झाँसी बन,  
सँहारती  नारियाँ।

प्रणय की वेदी तज 
हँस के वो भेज देती 
रण भूमि  पर जान 
भी  हारती नारियाँ।

असमय जो हर ले 
प्राण के भी प्राण को 
तो बन सावित्री भी 
जान लाती नारियाँ।

कभी बन हाडा रानी 
कभी बन पन्ना धाय 
निज शीश काटकर 
रख  देती नारियाँ।
- सविता सिंह मीरा, जमशेदपुर
 

Share this story