नव रात्रि - सुनील गुप्ता
( 1 ) नव रात्रि
जोश उमंग बढ़ाए,
और लेकर आए खुशियाँ अपार !
चले आओ, माता का दरबार सजा लें...,
और फैलाए चलें प्रेम-भक्ति की बयार !!
( 2 ) नव रात्रि
उत्साह उल्लास बढ़ाए,
और खिलाए चले जीवन बगिया !
हो रही शुरुआत, उत्सव त्यौहारों की....,
आओ, मिल के खेलें सभी रास डांडिया !!
( 3 ) नव रात्रि
ऊर्जा का संचरण करे,
और तमस अंधकार को दूर भगाए !
आओ चलें माता का रूप-श्रृंगार निहारलें...,
और ज्ञान प्रकाश के उजियारे को भरलें !!
( 4 ) नव रात्रि
नव रूप दिखलाए,
और चले जीवन पुष्प खिलाए !
आओ, मातारानी के चरणों में बैठके....,
चलें जीवन को हर्षाए और सरसाए !!
( 5 ) नव रात्रि
पर्व है जागरण का प्रिय,
आओ, आनंद से अपने हिय को भरलें !
और चलें मन चेतनता को अपने जगाए...,
चलो श्रीदर्शन से स्वयं को कृतार्थ करलें !!
सुनील गुप्ता (सुनीलानंद), जयपुर, राजस्थान