नवीन छंद (चौपाला छंद) - डॉ ओम प्रकाश श्रीवास्तव

 
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अच्छे कर्मों का आयुध न्यारा।
हरदम देता अनुपम फल  प्यारा।।

शान मान यह अति पावन देता।
सारे कंटक पथ से हर लेता।।

भक्ति-शक्ति का जो आयुध पाता।
जीवन उसका स्वर्णिम बन जाता।।

ईश-कृपा है नित उस पर रहती।
सुख-वैभव की सत गंगा बहती।।

ज्ञान-बुद्धि का जो आयुध पाए।
पास सफलता खुद उसके आए।।

खुशियाँ जीवन में करें बसेरा।
वैभव लक्ष्मी का रहता डेरा।।

युद्ध-भूमि में जो आयुध होते।
बीज सदा  ही हिंसा का बोते।।

सैनिक कर में  जब आयुध रखते।
दया-भाव को तब कम ही लखते।।
- डॉ ओम प्रकाश श्रीवास्तव ओम,
 कानपुर नगर, उत्तर प्रदेश 
(18 मात्रा का यह नवीन छंद मेरे द्वारा सृजित किया गया है। इस छंद में दो-दो पंक्तियों में तुकांत देखा जाता है तथा अंत में चौकल अनिवार्य है। यगण (121) अंत में निषेध है।शेष सामान्य नियम छंद के यथावत हैं।।
 

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