कविता - जसवीर सिंह हलधर 

 
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सोने की पायल छनन छनन !
आयी पहने  भृष्टाचारन !!

छन छन पायल झंकारों से ,
नैनों के कुटिल प्रहारों से !
संसद में देखो नाच रही ,
बतियाती खादी यारों से !
मर्यादा तार तार करके ,
गिनवाती सिक्के खनन खनन !
सोने की पायल छनन छनन !!1

लहराती कुटिल दिशाओं में ,
तब सत्य मार्ग अकुलता है !
जब रूप दिखाये योवन का ,
तब स्वर्ग नर्क हो जाता है !
नेता बहरे हो जाते हैं ,
सुनते ना दुखियों का कृंदन !
सोने की पायल छनन छनन !!2

स्नातक पैदल चलते है ,
कुत्ते कारों में घूम रहे !
अनपढ़ नेताजी यान चढ़े ,
जो आसमान को चूम रहे !
हलधर फांसी पर झूल रहे ,
सुनता ना दंभी सिंहासन !
सोने की पायल छनन छनन !!3

मध मस्त घूमती फिरती है ,
ये संसद के गलियारों में !
ये पैंठ बनाये बैठी है ,
हर दल के राजकुमारों में !
कर अट्टहास इठलाती है ,
होगा कब इसका दंभ दलन !
सोने की पायल छनन छनन !!4

सदियों से हमको सता रही ,
ये उस घर की पटरानी है !
नस नस में जहर लिए फिरती ,
ये विष से भरी जवानी है !
हलधर" का हल ही कुचलेगा ,
इस जहरीली नागिन का फन !
सोने की पायल छनन छनन !!5
 - जसवीर सिंह हलधर, देहरादून  
 

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