राम राम कह पीटीं घांटी - अनिरुद्ध कुमार
Jan 30, 2025, 22:58 IST

जागल सूतल, सोंची ताकी।
कतना कटनी, कतना बाकी।।
का बाँचल बा, का का बांटी।
का राखीं आ का का छांटीं।।
बेचैनी में निशदिन काटीं।
सब कुछ लागे माटी माटी।।
जाये के बा, मन के घांकी।
भाव उठेला रह रह हांकी।।
आई माई फूआ काकी।
फरके से पारेला झाँकी।।
मन छछनें ला, मार गुलाटी।
जीवन के कइसन परिपाटी।।
मनभाये जग चूमी चाटी।
भर जाये मन दूरे खाटी।।
अंत समय जग मारे लाठी।
डर लागत बा देख लुआठी।।
राम रसायन से चित पाटी।
राम राम कह पीटीं घांटी।।
- अनिरुद्ध कुमार सिंह
धनबाद, झारखंड