सावन - मुकेश कुमार दुबे

आया सावन का मनभावन महीना,
सभी महीनों का है जो नगीना।
कैलाशपति शिव जी का मास यह,
पुजते शिव को हर हर बम कह।
सोमवार, शिवरात्रि, नाग पंचमी,
हरियाली तीज, रक्षाबंधन, कजरी।
है सारे पवित्र त्यौहार इस माह के,
मनाते सभी हर्षोल्लास, प्रेम से।
रिमझिम-रिमझिम बरसता सावन,
मौसम को बनाता है सुहावन।
हर्षित होते किसान मेघ देख,
हर्षित धरती-गगन सारे खेत।
बादल देख वन में मोर है नाचे,
बारिश की फुहारों में किसान भी नाचे।
युवतियों ने बागों में डाले झूले,
साथियों संग खुशी से झूलते झूले।
सजनी का मन भीतर ही कचोटे,
किस्मत अपने है अब खोटे।
दूर बसे जो साजन मेरे,
कौन खुशियां मनाए संग मेरे।
विरही घर में अपना सिर धुनती,
रात-दिन अपने किस्मत पर रोती।
किस जन्म में पाप किए है,
सजनी से क्यों दूर पिया है।
ऊपर से सावन बरसता है,
पर तन, मन में आग लगता है।
- मुकेश कुमार दुबे "दुर्लभ"
(शिक्षक सह साहित्यकार), सिवान, बिहार