सिपाही धनुषधारी सिंह को वीर चक्र (मरणोपरांत) - हरी राम यादव

Utkarshexpress.com - 1947 में बंटवारे की त्रासदी से रक्तरंजित धरती अभी सूख भी न पाई थी कि दो महीने बाद ही 22 अक्तूबर, 1947 को पाकिस्तान ने भारत पर कश्मीर के मुद्दे को लेकर कबाइलियों के भेष में आक्रमण कर दिया। इन कबाइलियों के सात में छुपे रूप में पाकिस्तानी सेना के अधिकारी और सैनिक भी थे । उत्तर पश्चिमी सीमा से 5000 से अधिक कबाइली 22 अक्तूबर, 1947 को अचानक कश्मीर में घुस आए। इन्होने पहले दोमल और मुजफ्फराबाद पर हमला बोला और इसके बाद गिलगित, स्कार्दू, हाजीपीर दर्रा, पुंछ, राजौरी, झांगर, छम्ब और पीरपंजाल की पहाड़ियों पर हमला किया । उनका इरादा इन रास्तों से होते हुए श्रीनगर पर क़ब्ज़ा करने का था। इस हमले को देखते हुए भारत सरकार ने भी युद्ध की घोषणा कर दी।
25 – 26 फरवरी 1948 की रात को 3 पैरा के दो सेक्शन आगे बढ़ रहे थे। सिपाही धनुषधारी सिंह सबसे आगे और बायीं ओर चलने वाले सेक्शन में थे इस सेक्शन की कमान सूबेदार सावन सिंह के हाथों में थी। यह सेक्शन हेंडन रिज पर स्थित दुश्मन पर आक्रमण करने के लिए आगे बढ़ रहा था। आगे बढ़ते हुए इन दोनों सेक्शनों पर अचानक दुश्मन की ओर से मीडिएम मशीनगनों और राइफलों से भयानक गोलीबारी की जाने लगी। दुश्मन की ओर से की गयी इस भयानक गोलीबारी में सिपाही धनुषधारी सिंह के सेक्शन के बारह जवान हताहत हो गये। अपने साथी सैनिकों को हताहत होते देख सिपाही धनुषधारी सिंह का खून खौल उठा। सिपाही धनुषधारी सिंह आगे बढ़े और अपनी ब्रेन गन को एक चट्टान के पीछे लगाकर दुश्मन की स्थिति पर सटीक फायरिंग करने लगे। सिपाही धनुषधारी सिंह द्वारा की जा रही फायरिंग से सूबेदार सावन सिंह को मौका मिल गया और वे अपने हताहत जवानों को वहां से पीछे ले जाने में कामयाब रहे । साथ ही साथ सूबेदार सावन सिंह ने अपने पीछे वाले सेक्शन के जवानों को पुनः पुर्ननियोजित किया। सिपाही धनुषधारी सिंह दुश्मन से अपने साथियों का बदल लेने के लिए उद्वेलित हो उठे। वो कुहनी के बल रेंगते हुए आगे बढ़े और दुश्मन पर भीषण फायरिंग करने लगे। सिपाही धनुषधारी सिंह की सटीक और भीषण फायरिंग से दुश्मन सैनिकों के हौसले पस्त हो गये।
सिपाही धनुषधारी सिंह वीरता और कर्तव्य परायणता का परिचय देते हुए निडरता से आगे बढ़ते रहे और दुश्मन की गोलाबारी की परवाह न करते हुए उस पर फायरिंग करते रहे। उनकी इस वीरतापूर्ण कार्यवाही से उनका सेक्शन आगे बढ पाया। दुश्मन से वीरता से लड़ते हुए सोनांव के इस लाल ने मातृभूमि का कर्ज चुकाने के लिए अपने प्राणों की आहुति देकर अपने गांव को इतिहास के पन्नों में अमर कर दिया। उनकी वीरता और कर्तव्य परायणता के लिए उन्हें 25 फरवरी 1948 को मरणोपरान्त वीर चक्र प्रदान किया गया।
तमसा नदी की गोद में बसे गांव सोनावां का नाम देश के इतिहास में अपनी वीरता और बलिदान से अमर करने वाले सिपाही धनुषधारी सिंह का जन्म 29 अक्टूबर 1927 को हुआ था। सिपाही धनुषधारी सिंह के पिता का नाम श्री धनराज सिंह तथा माता का नाम श्रीमती सुखना देवी था। वह 29 अक्टूबर 1946 को भारतीय सेना की पंजाब रेजिमेंट में भर्ती हुए थे। प्रशिक्षण के पश्चात वह 1 पंजाब रेजिमेंट में पदस्थ हुए। पहले इनका गांव जनपद फैजाबाद की तहसील अकबरपुर का हिस्सा हुआ करता था । 29 सितम्बर 1995 को अम्बेडकर नगर के अस्तित्व में आने के बाद इनका गांव जनपद अम्बेडकर नगर में आ गया।
आपको बताते चलें कि वीर चक्र युद्धकाल का तीसरा सबसे बड़ा सम्मान है। यह सम्मान युद्ध क्षेत्र में असाधारण वीरता के लिए दिया जाता है। सिपाही धनुष धारी सिंह अम्बेडकर नगर के इकलौते वीर चक्र विजेता हैं। सिपाही धनुष धारी सिंह के भाई की बेटी श्रीमती रामा देवी अपने चाचा के नाम पर स्मारक बनाए जाने या किसी सरकारी इमारत, सड़क, स्कूल का नामकरण किए जाने या उनके नाम पर तोरणद्वार बनाये जाने को लेकर पिछले कई वर्षों से प्रयासरत थी , उनका यह प्रयास वर्तमान जिलाधिकारी श्री अविनाश सिंह और जिला सैनिक कल्याण अधिकारी कर्नल भारती कान्त शुक्ल की सदिच्छा से रंग लाया और 26 जुलाई 2024 को कारगिल विजय दिवस के अवसर पर वीर चक्र विजेता धनुषधारी सिंह के नाम पर अकबरपुर से दोस्तपुर जाने वाले सड़क पर स्थित गोहन्ना चौराहे का नामकरण “सिपाही धनुषधारी सिंह, वीर चक्र (मरणोपरांत) कर दिया गया ।
- हरी राम यादव, सूबेदार मेजर (आनरेरी) अयोध्या, उत्तर प्रदेश