तेरी क्या औकात - डॉ सत्यवान सौरभ

 
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नई सदी में आ रहा, ये कैसा बदलाव ।
संगी-साथी दे रहे, दिल को गहरे घाव ।।

हम खतरे में जी रहे, बैठी सिर पर मौत ।
बेवजह ही हम बने, इक-दूजे की सौत ।।

जर्जर कश्ती हो गई, अंधे खेवनहार ।
खतरे में ‘सौरभ’ दिखे, जाना सागर पार ।।

थोड़ा-सा जो कद बढ़ा, भूल गए वो जात ।
झुग्गी कहती महल से, तेरी क्या औकात ।।

मन बातों को तरसता, समझे घर में कौन ।
दामन थामे फ़ोन का, बैठे हैं सब मौन ।।

हत्या-चोरी लूट से, कांपे रोज समाज ।
रक्त रंगे अखबार हम, देख रहे हैं आज ।।

कहाँ बचे भगवान से, पंचायत के पंच ।
झूठा निर्णय दे रहे, ‘सौरभ’ अब सरपंच ।।

योगी भोगी हो गए, संत चले बाजार ।
अबलाएं मठ लोक से, रह-रह करे पुकार ।।

दफ्तर,थाने, कोर्ट सब, देते उनका साथ ।
नियम-कायदे भूलकर, गर्म करे जो हाथ ।।

मंच हुए साहित्य के, गठजोड़ी सरकार ।
सभी बाँटकर ले रहे, पुरस्कार हर बार ।।
- डॉ सत्यवान सौरभ , उब्बा भवन, आर्यनगर, हिसार (हरियाणा)-127045 (मो.) 7015375570 (वार्ता+वाट्स एप)
 

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