वीर शिवाजी (आल्ह छंद) - कर्नल प्रवीण त्रिपाठी

शिवनेरी के अगम किले में, जन्में थे भारत के लाल।
पिता शाह, माता जीजा के, किया पूत ने बड़ा कमाल।1
जीजा बाई मनोयोग से, भरती रहतीं थी संस्कार।
कूटनीति,चतुराई अतुलित, शक्ति बुद्धि थी भरी अपार।2
अल्प आयु में शिवा दिखाते, अपनी क्षमता बारंबार।
मुगल शासकों के नित देखें, जनता पर वह अत्याचार।3
आत्मसात कर लिया देश का, गौरवशाली भव्य अतीत।
तरुणाई के आते-आते, तोरण किला लिया था जीत।4
कूटनीति चाणक्य सरीखी, रणनीतिक ज्यों शुक्राचार्य।
शक्ति, धैर्य, कौशल के बूते, करने बड़े-बड़े थे कार्य।5
कोंड देव, गुरु रामदास से, पाया विविध भाँति का ज्ञान।
कुशल प्रशासक बने शिवा जो, नारी का करते सम्मान।6
ताना जी जैसे सेनापति, उनके दल में वीर महान।
बीजापुर शासक थर्राये, देख दुर्ग विजयी अभियान।7
बिन घबराये लोहा लेते, बने शिवाजी ऐसे वीर।
शाइस्ता की उँगली काटी, अफजल मारा सीना चीर।
दस्यु समुद्री करते रहते, जल या थल में अक्सर लूट।
मातृ भूमि की रक्षा के हित, नीति बनाई एक अटूट।8
सागर तट पर दुर्ग बनाये, जिनको दुश्मन सके न जीत।
स्थापित नौसेना करके, किया कार्य तब परम पुनीत।9
वीर मराठा सेना के बल, जीत लिए कितने ही भूप।
राज्य मराठा स्थापित कर, बने छत्रपति शिवा अनूप।10
मुगल राज्य को दिया चुनौती, हुए आगरा में तब बंद।
चतुराई से बाहर आये, शासक की आभा कर मंद।11
उत्तर से दक्षिण फैलाया, राज्य मराठा पहली बार।
अटक और तंजावुर तक था,वीर मराठों का अधिकार।12
भारत का बच्चा-बच्चा भी, करता है दिल से गुणगान।
ऐसे वीर शिरोमणि का हम, करते हैं दिल से सम्मान।13
- कर्नल प्रवीण त्रिपाठी, नोएडा/उन्नाव, उत्तर प्रदेश