जलहरण घनाक्षरी - मधु शुक्ला 

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मन कहे वही कर, पर ध्यान बात धर,
         जग सारा एक घर, हर कोई पाये सुख।
भेदभाव वाली बात, कीजिए कभी न तात,
          मुरझा के नेह गात, करता पाताल रुख।
माता-पिता संत कवि, चंद्र तारे और रवि,
        पालें उपकारी छवि, तभी प्रिय हैं ये मुख।
भावना समानता की, त्याग क्षमा ममता की,
           जननी उदारता की, कभी नहीं देती दुख।
— मधु शुक्ला, सतना, मध्यप्रदेश 

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