भागती ज़िंदगी का ठिकाना कहां होता - सुनील गुप्ता
Dec 16, 2024, 21:48 IST
( 1 ) भागती, भागती
दौड़ती ज़िंदगी का,
कहां होता है, यहाँ ठिकाना !
और अक़्सर ये ख़त्म हो जाया करती...,
यूँ ही देखते घूमते, निहारते दुनिया ज़माना !!
( 2 ) ज़िंदगी, ज़िंदगी
चलें जीते यहाँ,
और रहें सदा, स्वयं को खोजते !
कभी छोड़ें न कल पर, कोई भी काम..,
और चलें आज अभी, तत्क्षण में पूरा करते !!
( 3 ) का, काल
वक़्त ठहरता नहीं,
और न ही देता, पुनः हमें अवसर !
बस चलें, जीवंत जीवन जीते यहाँ पर...,
और छोड़ दें सारी चिंताएं, श्रीहरि पर !!
( 4 ) ठिकाना
कहां होता है ,
बेतहाशा भागती दौड़ती, ज़िंदगी का !
आओ, चलें धैर्य संतोष रखते धीरे-धीरे...,
और श्रीहरि का भजन प्रसाद बाँटते सदा !!
- सुनील गुप्ता (सुनीलानंद), जयपुर, राजस्थान