सर्दियों का आगमन - कर्नल प्रवीण त्रिपाठी

 
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शीत का हो गया है पुनः आगमन,
रात लंबी घटें दिन लगा ज्यों ग्रहण।

नित्य गिरता रहे न्यूनतम ताप अब,
बेबसों को सताये निशा की गलन।

वस्त्र सब गर्मियों के सहेजे गए,
गर्म ऊनी सुहाने लगें हर बसन।

शीत लहरी चलेगी कई माह अब,
कँपकपी से सिहर जाएं’गे सर्व तन।

धूप का एक टुकड़ा भी’ है कीमती,
मेघ से रिक्त सम्पूर्ण हो नित गगन।

मार दुहरी पड़े जब प्रदूषण बढ़े,
साँस रुक सी रही बढ़ रही है हफन।

सर्दियों में किसी को नहीं कष्ट हो,
निर्धनों के लिये मिल करें कुछ जतन।
- कर्नल प्रवीण त्रिपाठी, नोएडा/उन्नाव, उत्तर प्रदेश
 

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