सर्दियाँ - झरना माथुर

 
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इन सर्दियों के भी किसी जमाने में बड़े अच्छे दिन हुआ करते थे,
धूप सेकने के लिए बचपन, जवानी, बुढ़ापा साथ हुआ करते थे ।

धूप के निकलते ही नुक्कड़ और  छतों पर छा जाती थी रौनके,
गुलजार हो जाता था हर बाग बगीचा दिन खुशहाल हुआ करते थे।

दादाजी भी ताऊ जी के साथ शतरंज बिछा लेते थे छत पे ही,
और दादीजी के  भी बाल धुल के रेशमी हो जाया करते थे।

दोपहर का खाना दोस्तों यारों के साथ ही खा लिया जाता था,
क्योंकि खिचड़ी और तहरी के साथ उसके चार यार हुआ करते थे।

बुआ,चाचा, मौसी, मामा का रिश्ता मजबूती से जुड़ा होता था,
मूंगफली, तिल, गजक खाने के भी बहाने बहुत हुआ करते थे।

दूर थे हम सब मोबाइल, फेसबुक, व्हाट्सएप और भागती दुनिया से, 
भाईचारे, शांति, प्रेम और विश्वास के वो दिन हुआ करते थे।
- झरना माथुर, देहरादून, उत्तराखंड
 

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