सपदान्त दोहे - मधु शुक्ला

 
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पक्षपात  सद्कर्म  का, करता आया धर्म।

किन्तु सदा अज्ञानता, से दुख पाया धर्म।।

त्याग, प्रेम, सद्भावना, करुणा, ममता, प्यार।

हर्ष और सहयोग धन, लाये‌  समता प्यार।।

अन्न, वस्त्र, शिक्षा, दवा, जन जीवन आधार।

प्राप्त करें सब हास्य तब, हो आनन आधार।।

भेदभाव के कीट को , खुद से रखिए दूर ।

शत्रु मनुजता का यही, इसको करिए दूर ।।

जन्म भूमि  रक्षा करें , यही  हमारा  धर्म।

आन वतन की हेतु  है, सकल सहारा धर्म।।

--  मधु शुक्ला, सतना,  मध्यप्रदेश

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