ग़ज़ल = दीप्ति अग्रवाल
Sat, 13 Mar 2021

दिखाना ही समझते शान हैं दूजे को नीचा जो,
गिरे किरदार के लगते हमें तो आदमी ही वो।
दिखाते रौब दौलत का , उड़ाते खिल्ली सबकी ही,
नहीं इज़्ज़त कभी मिलती, दुखाओ दिल किसी का तो।
भले दौलत कमाई ढेर हो ,पर काम क्या आई,
किसी के वास्ते इक पाई भी खर्ची नहीं देखो।
करो जितना बुरा लेकिन यही तुम याद रखना बस,
करम जैसा करोगे फल उसी अनुसार देगा 'वो'।
बनो इंसान सबसे प्यार से व्यवहार तुम रख कर,
कि इसमें शान है सच्ची , अगर खुशियाँ कभी बाँटो।
= दीप्ति अग्रवाल (दीप) , दिल्ली