ग़ज़ल = सलिल सरोज
Thu, 8 Apr 2021

अए दिल आज तू मचल के देख,
उनकी गली में फिर चल के देख।
यूँ तो देखा बहुत बार आते जाते,
एक दफा उन को संभल के देख।
हुस्न अब भी बाकमाल है उनका,
बस अपनी निगाहें बदल के देख।
माना बहुत दर्द है रुसवाईयों में,
थोड़ा सा और सही, जल के देख।
सब कुछ अब भी वहीं का वहीं है,
इस दुनियादारी से निकल के देख।
तमाम कायनात सरासर बेमानी हैं,
उनकी रूह में बावस्ता ढ़ल के देख।
सलिल सरोज, नई दिल्ली