अब की बार - प्रदीप सहारे

 

अब की बार ... 400 पार - 
साम ,दाम, दंड, भेद ,
चार चौकार की हैं,
माय बाप , जोहार ,
मेरी मेरी ,
माय बाप सरकार ।
अब की बार ... 400 पार ...
पहला चौका ,पहली पहल,
सामजस्य से निकले हल ।
जो हैं पक्ष का कर्ता -धर्ता,
बंद कमरे में गुप्त वार्ता।
बंद कमरे की बाहर चर्चा ,
फिर एक के दो , दो के चार ..
अब की बार 400 पार ...
दूसरा चौका,
अजब गजब ,
खरीदने बेचने का खेल सब।
बस लगाना हैं एक दाम ।
दाम सही देते ही,
होती हैं जय जयकार ।
अबकी बार 400 पार ...
तीसरा चौका,
देखते रहने का मौका,
शांति से खाते खंगालो।
उलटा सीधा बोलने बोलो।
बोले तो फिर ...
निकाले अपना इडी हथियार ।
अबकी बार 400 पार ...
चौथा चौका धुंवाधार।
चाँद तारे और सितारे।
शंख, तुतारी, डमरुधारी।
लाल,पीला, भगवाधारी।
भाषणो का दौर चारों ओर।
रुंधा गला, कापते होठ ,
बहें अश्क की धार,
चलेगा यह,
ईमोशनल अत्याचार ।
अबकी बार 400 पार ...
- प्रदीप सहारे, नागपुर, महारष्ट्र