जिनगी धूर लागेला - अनिरुद्ध कुमार

 

लुकाइल चाँद बदरी में बड़ी मजबूर लागेला,
भुलाइल राह ये साथी किनारा दूर लागेला।

कहाँ कोई उबारेला कहाँ बिगड़ी सँवारेला,
जहाँ लागे तमाशाई गरज भरपूर लागेला।

भरोसा का करे कोई बड़ी नाजुक घड़ी साथी,
नयन तरसे नया तेवर सबे मगरूर लागेला।

वफा के नाम पर धोखा जमाना बेवफाई के,
इरादा में जहर घोलल अहम में चूर लागेला।

गुजारा आजबा मुश्किल बुजदिली लोगपे हाबी,
जहां देखीं नजर जालिम जख्म नासूर लागेला।

सहारा का करीं कोई सबे आपन सुधारे में,
करेजा छार हो जाला अजब बेलूर लागेला।

अकेले बैठ के सोंची मुहब्बत प्यार की बातें,
हकीकत देख दिल रोये नशा काफूर लागेला।

इहाँ केबा पुकारीं हम तनी आपन सुनावे के,
कहीं अपने सुनीं अपने नशीबा झूर लागेला।

गजब दुनिया करिश्माई तमाशा हीं तमाशा बा,
रहे बेचैन'अनि' हरदम, इ जिनगी धूर लागेला।
- अनिरुद्ध कुमार सिंह, धनबाद, झारखंड