बचपन - जया भराडे बडोदकर

 

utkarshexpress.com - एक बचपन वो भी था जो अपने आप में बहुत सुन्दर शालीनता से भरा हुआ खुश किस्मत समझता था। उसे किसी का भय नहीं और किसी का लाचार भी नहीं था। सुबह-सुबह आठ बजे की स्कूल बस पकड़ कर स्कूल में पहुँच जाते थे, फिर प्रार्थना करके क्लास में जाना जब तक शिक्षक नहीं आ जाते तब तक मौज मस्ती करतें रहना बहुत सुकून मिलता धा। 
पढाई लिखाई का तो कभी टंशन लिया ही नहीं। हाँ पी टी, खेलकूद, लायब्रेरी, म्यूजिक पिरीयड बहुत बहुत अच्छा लगता धा। बस एक्जामिनेशन का समय आते ही घर में थोड़ा माहौल बदल जाता था। कभी कभी मम्मी पापा तो कभी दीदी पढाई लेने लगती लगता धा उन्हें ही जाकर एक्जाम देना है। इस प्रकार समय जैसे-तैसे निकल जाता था और अंत में रिजल्ट आने के पहले ही दिन पापा बाजार से मिठाई लेकर आ जाते थे। और फिर रिजल्ट वाले दिन की सुबह निराली और खुशी से भरी होती सभी अगल बगल के लोगों के घर घर जाकर मिठाई बांटी जाती थी। कैसे भी नंबर आए पर अगले क्लास में चले गए बस इतना ही सोचना दिल में खुशी का ठिकाना न ही होता था। 
सारी छुट्टी मनाने के लिए मामा-मौसी नाना-नानी के साथ बिताने चले जाते थे या फिर कोई न कोई मेहमान घर में आ जाते। ये पल आज भी भूल नहीं जाते,। 
बचपन समय के पंख लगा कर बहुत जल्दी उड़ गया। जो आज भी दिल के करीब लगता है, सारे संगी साथी दोस्तों की याद दिलाता है। 
- जया भराडे बडोदकर, टा टा सेरीन, ठाने, मुम्बई, महाराष्ट्