बंधन - मधु शुक्ला

 

वास करें प्रभु राम जहाँ,पर मानव का मन पावन है।
हों रघुवीर सहाय तभी, गहता शुचिता मन आँगन है।
दौलत भक्ति तभी मिलती,जब जीवन में अनुशासन है।
दूर रहे मद मोह तभी,प्रभु का करता मन गायन है।

बंधन है मजबूत वही, जिसमें बिन स्वार्थ समर्पण है।
व्यक्ति सदा निज साजन का, करता बिन शर्त समर्थन है।
जीव जुड़ा रहता प्रभु से, मन से करता जब अर्चन है।
रीति यही जग की इसमें, चलता रहता परिमार्जन है।
 — मधु शुक्ला, सतना, मध्य प्रदेश