व्यवहार - सुनील गुप्ता 

 

 (1) " व् ", व्यथा है आजकल हम सबकी यह 
               कि, लोग करते नहीं अच्छा व्यवहार  !
               और समझ पराया सभी को यहां पर.....,
               करते चलते हैं अजीब सा व्यवहार !!
(2) " य ", यह याद रहे कि व्यवहार हमारा 
               दिलाए समाज में हमें पद प्रतिष्ठा  !
               रखें सबके संग अच्छा नेक व्यवहार.....,
               तो, बढेगी हमारी जन मन में आस्था  !!
(3) " व ",वक़्त है कि किसी को बख्शे नहीं
              और समय आने पर ले जरूर प्रतिकार  !
              इसलिए रखें सभी से व्यवहार ऐसा.....,
              कि,मानो वह है हमारा अपना ही परिवार !!
(4) " हा ", हासिल वही करें ज़िन्दगी में ऊँचाई
                जो चलें सभी संग करते दोस्ताना व्यवहार !
                नहीं खोएं कभी अपनी मान मर्यादा......,
                और बनाए चलें सभी से संबंध प्रीतिकर !!
(5) " र ", रस्म अदाएगी भर ही ना काम करें
              और चलें निभाए सभी से सच्ची मित्रता  !
              अपने विश्वास को बनाएं और भी अटल....,
              और कभी किसी से ना रखें कोई शत्रुता !!
(6) " व्यवहार ", व्यवहार है हमारे जीवन का दर्पण
                जिसमें होए परिलक्षित हमारा व्यक्तित्व  !
                सदा अपनाएं चलें जीवन में सदाचार.......,
                और बनाएं अपना विराट श्रेष्ठ कृतित्व !!
(7) " व्यवहार ", व्यवहार की इस कसौटी पर
             हम चलें उतरते सदा सही यहां   !
            और नहीं आंकें किसी को पद प्रतिष्ठा से....,
            करते चलें मूल्यांकन उसके व्यवहार से यहां !!
-सुनील गुप्ता (सुनीलानंद), जयपुर, राजस्थान