किताबें बहुत कुछ कहती हैं - मुकेश कुमार दुबे

 

मौखिक आख्यानों से
पेड़ों के पत्तों और
कागज़ों पर हस्तलिखित
स्वरुप प्राप्त करते हुए
छापेखानों में छपकर
सुंदर -सुंदर रुप प्राप्त
करने के साथ ही
मोबाइल, लैपटॉप, कम्प्यूटर में
मेमोरी कार्ड, पेनड्राइव में
समाहित होती हुई
ऑनलाइन, ऑफलाइन होकर भी
सबके अंतरात्मा में
अपना घर बनाने वाली
किताबें बहुत कुछ कहती है।

वेद, पुराण, उपनिषद्, आरण्यक,
ब्राह्मण, संहिता, स्मृति, रामायण,
महाभारत, गीता, आदि
संस्कृत वांग्मयों से सफर शुरू कर
हिंदी, तमिल, तेलुगू, बांग्ला,
आदि भारतीय भाषाओं के साथ-साथ
अंग्रेजी, उर्दू,रुसी, चीनी, आदि
विदेशी भाषाओं में भी
अपना स्वरुप प्राप्त करते हुए
किताबें बहुत कुछ कहती है।

मानव सभ्यता के आरंभ से अंत
की कहानी सुनाती हुई
लूट-खसोट, आक्रमण, अपहरण,
साम्राज्यवाद, उपनिवेशवाद,
औद्योगिकीकरण की राह चलकर
विश्वराज्य की अवधारणा को
साकार करने के लिए
संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना कर
भारत के "वसुधैव कुटुंबकम्"
के सिद्धांत को कार्यरुप
देने के प्रयास की कहानी
ये किताबें कहती हैं।

आदिकाल के अरण्यक जीवन से
शुरू कर हड़प्पा संस्कृति,
वैदिक सभ्यता, गुप्तकाल,
तुर्क, अफगान,मुगल
आक्रमणों की कहानी,
ब्रिटिश शासन, स्वतंत्रता संग्राम,
और आजाद भारत में
संसदीय शासन प्रणाली
की कहानी
ये किताबें कहती हैं।

युद्ध, शांति, न्याय, अन्याय,
विकास,पतन, धरती,गगन,
भाईचारा,लगाव, अलगाव,
सबकी कहानी कहती हैं।
वीरों के शौर्य गाथा,
अंतरिक्ष में उड़ान,
खेतों में किसान,
सीमा पर जवान,
प्रयोगशाला में विज्ञान की
कहानी के साथ-साथ
किताबें बहुत कुछ कहती हैं।
किताबें बहुत कुछ कहती हैं।
- मुकेश कुमार दुबे "दुर्लभ" सिवान, बिहार
( शिक्षक सह साहित्यकार)
मोबाइल नंबर- 9576535097