छंद (महिला दिवस)  - जसवीर सिंह हलधर

 

चाहे सतयुग रहा,चाहे त्रेता युग रहा ,
सभ्यता के रूप रंग भाँपती हैं नारियां।

लोक लाज व्यवहार ,सामाजिक अत्याचार ,
नीति या कुरीतियों को नापती हैं नारियां।।

गृहस्थ की ये पालिका हैं , क्रुद्ध हों तो कालिका हैं ,
युग चेतना की आग तापती हैं नारियां ।

कभी शांति की मिसाल ,कभी क्रांति की मशाल ,
रोज नया इतिहास छापती हैं नारियां ।।
 - जसवीर सिंह हलधर, देहरादून