बाल दिवस - डॉ. सत्यवान 'सौरभ'

 

1. बने संतान आदर्श हमारी
बने संतान आदर्श हमारी, वो बातें सिखला दूँ मैं।
सोच रहा हूँ जो बच्चा आये, उसका रूप, गुण सुना दूँ मैं।।
बाल घुंघराले, बदन गठीला, चाल, ढाल में तेज भरा हो।
मन शीतल हो ज्यों चंद्र-सा, ओज सूर्य-सा रूप धरा हो।।
मन भाये नक्स, नैन हो, बातें दिल की बता दूँ मैं।
बने संतान आदर्श हमारी, वो बातें सिखला दूँ मैं।।

राह चले वो वीर शिवा की, राणा की, अभिमन्यु की।
शत्रुदल को कैसे जीते, सीख चुने वो रणवीरों की।।
बन जाये वो सच्चा नायक, ऐसे मंत्र पढ़ा दूँ मैं।
बने संतान आदर्श हमारी, वो बातें सिखला दूँ मैं।।
सीख सिखले माँ पन्ना की, झाँसी वाली रानी की।
दुर्गावती-सा शौर्य हो, लाज पद्मावत मेवाड़ी-सी।।
भक्ति में हो अहिल्या मीरा, ऐसी घुटकी पिलवा दूँ मैं।
बने संतान आदर्श हमारी, वो बातें सिखला दूँ मैं।।

पुत्र हो तो प्रह्लाद-सा, राह धर्म की चलता जाये।
ध्रुव तारा-सा अटल बने वो, जो सत्य पथ दिखलाये।।
पुत्री जनकर मैत्री, गार्गी, ज्ञान की ज्योत जलवा दूँ मैं।
बने संतान आदर्श हमारी, वो बातें सिखला दूँ मैं।।
सोच रहा हूँ जो बच्चा आये, उसका रूप, गुण सुना दूँ मैं।
बने संतान आदर्श हमारी, वो बातें सिखला दूँ मैं।।
 2. पंछी
छोटे-छोटे पंछी लेकिन,
बातें बड़ी-बड़ी सिखाते।
उड़ते ऊँचे आसमान में,
मंजिल की ये राह दिखाते।

ये छोटे-छोटे जीव मगर,
इनसे ये नभ भी हारा है।
आत्मबल से ओत-प्रोत ये,
मिल उड़ना इनको प्यारा है।

बड़े-बड़े जो ना कर पाए,
पल भर में ये कर जाते।
छोटे-छोटे पंछी लेकिन,
बातें बड़ी-बड़ी सिखाते।

लड़ते हैं ये तूफानों से,
उड़ सूरज से भी बात करें।
पंख रुकते हैं कब इनके,
सागर, पर्वत भी पार करें।

कोमल काया के हैं लेकिन,
सदा हौंसले ये आजमाते।
छोटे-छोटे पंछी लेकिन,
बातें बड़ी-बड़ी सिखाते।

तिनके-पत्ती जोड़-जोड़ सब,
रहे घरोंदे हैं सभी सजे।
इच्छा जो दाने-पानी की,
कमा श्रम से, ले हैं मजा।

प्यारी-सी एक सीख देकर,
अंतर्मन को है हर्षाते।
छोटे-छोटे पंछी लेकिन,
बातें बड़ी-बड़ी सिखाते।

अपने घर, गलियां नगर में,
यदि मधुर स्वर गुंजाना है।
मनुज सहेजे पंछी-पंछी,
गीत यही अब मिल गाना है।

ये नन्हे हैं मित्र हमारे,
हमसे बस ये आस लगाते।
छोटे-छोटे पंछी लेकिन,
बातें बड़ी-बड़ी सिखाते।
3. ठंड हुई पुरजोर
लगे ठिठुरने गात सब,
निकले कम्बल शाल।
सिकुड़ रहे हैं ठंड से,
हाल हुआ बेहाल।।

बाहर मत निकलो कहे,
बहुत ठंड है आज।
कान पकते सुनते हुए,
दादी की आवाज।।

जाड़ा आकर यूं खड़ा,
ठोके सौरभ ताल।
आग पकड़ने से डरे,
गीले पड़े पुआल।।

सौरभ सर्दी में हुआ,
जैसे बर्फ जमाव।
गली मुहल्ले तापते,
बैठे लोग अलाव।।

धूप लगे जब गुनगुनी,
मिले तनिक आराम।
सर्दी में करते नहीं,
हाथ पैर भी काम।।

निकलो घर से तुम यदि,
रखना बच्चों का ध्यान।
सुबह सांझ घर पर रहो,
ढककर रखना कान।।

लापरवाही मत करो,
ठंड हुई पुरजोर।
ओढ़ रजाई लेट लो,
उठिए जब हो भोर।।
4. प्यारी चिड़िया रानी।
सुबह-सुबह नन्ही चिड़िया,
आँगन में जब आती है।

फुदक-फुदक कर चूं-चू करती,
मीठे गीत रोज सुनाती है।

चिड़िया फुर्र फुर्र उड़ती है,
चोंच से दाने चुगती है।

बच्चों को है देती खाना,
सबसे पहले उठ जाती है।

छज्जा, खिड़की ढूंढें आला,
कहाँ घोंसला जाए डाला।
तिनका थामे चिमटी चोंच में,
सपनों का नीड सजाती है।

उम्मीदों के पंख पसारकर,
नील गगन को उड़ पार कर।

जीवन की कठिनाई झेलती,
अपना हर धर्म निभाती है।

उठो सवेरे और करो श्रम,
प्रगति इसी से आती है।

बच्चों, प्यारी चिड़िया रानी,
हमको यह सिखलाती है।
5. लाये सिंघाड़े
ठेले भर लाये सिंघाड़े के।
दिन आए फिर जाड़े के॥

पानी में ये मोती उगता।
सुंदर रूप तिकोना दिखता॥

जाड़े में हर बार ये आता।
सबके मन को ख़ूब भाता॥

बच्चों इसके गुण भरपूर।
कब्ज बदहजमी करता दूर॥

इसमें फ़ाईबर, प्रोटीन रहता।
ब्लड प्रेशर सब ये सहता॥

व्रत त्यौहार इससे मनती।
हलवा रोटी इससे बनती॥

जब भी तुम जाओ बाजार।
सिंघाड़े लाओ हर बार॥

लाकर ख़ूब सिंघाड़े खाओ।
सेहत अपनी अच्छी बनाओ॥
- डॉo सत्यवान 'सौरभ', 333, परी वाटिका,
कौशल्या भवन, बड़वा (सिवानी) भिवानी,
 हरियाणा – 127045,