कर्नल मुनीन्द्र नाथ राय युध्द सेवा मेडल, शौर्य चक्र (मरणोपरान्त)  - हरी राम यादव

 

utkarshexpress.com - गंगा नदी के किनारे बसी वीरों की धरती गाजीपुर, जहाँ के पानी की बूंद बूंद में देशभक्ति की ज्वाला धधकती है और जहाँ पर पैदा होने वाला हर बच्चा होश संभालते ही मातृभूमि की रक्षा के स्वप्न देखने लगता है, उसी धरती के गांव डेढ़गांवा में कर्नल मुनीन्द्र नाथ राय का जन्म 26 नवम्बर 1975 को श्रीमती शिव दुलारी राय तथा श्री नागेन्द्र प्रसाद राय के यहॉं हुआ था। इनके पिता श्री नागेन्द्र प्रसाद राय गवर्नमेंट हाईस्कूल, कलिम्पोंग में प्रधानाध्यापक थे। कर्नल मुनीन्द्र नाथ राय ने  अपनी इन्टरमीडिएट तक की शिक्षा सेंट अगस्टिन स्कूल, कलिम्पोंग तथा स्नातक की शिक्षा इलाहाबाद विश्वविद्यालय से पूरी की थी। 05 सितम्बर 1997 को उन्होंने भारतीय सेना की गोरखा राइफल्स में कमीशन लिया और 2/9 गोरखा राइफल्स में पदस्थ हुए। बाद में इनकी पोस्टिंग 42 राष्ट्रीय राइफल्स में हो गई।
कर्नल मुनीन्द्र नाथ राय की बटालियन जम्मू और कश्मीर के पुलवामा जिले के त्राल में तैनात थी और वह बटालियन की कमान संभाल रहे थे। उन्होंने त्राल के आसपास के इलाके में बड़ी संख्या में आतंकवादियों को निष्क्रिय करने में अनुकरणीय भूमिका निभाई थी।
27 जनवरी 2015 को हंडोरा गाँव के एक संदिग्ध मकान में खतरनाक आतंकवादियो के मौजूद होने की सूचना पाकर सेना और पुलिस की संयुक्त टीम कर्नल मुनीन्द्र नाथ राय के नेतृत्व में इलाके में पहुंची और जवानों द्वारा आतंकियों के मकान के घेर लिया गया पर इससे पहले कि सेना और पुलिस आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई कर उन्हें मार गिराती, मकान के भीतर से एक बुजुर्ग व्यक्ति बाहर निकला और उसने कर्नल मुनीन्द्र नाथ राय से गुजारिश की कि जवानों को कार्रवाई से रोक लें क्योंकि दोनों आतंकी आत्मसमर्पण करना चाहते हैं।
जब दोनों के बीच यह वार्तालाप चल ही रहा था उसी समय दो आतंकवादी अचानक घर से बाहर आए और उन्होंने कर्नल मुनीन्द्र नाथ राय के दल पर नजदीक से अंधाधुंध गोलीबारी करना प्रारंभ कर दिया, जिससे कर्नल मुनीन्द्र नाथ घायल हो गए। इस गोलीबारी की बौछारों में फंसने और गंभीर रूप से घायल होने के बावजूद अदम्य साहस और वीरता दिखाते हुए उन्होंने एक खतरनाक ए प्लस श्रेणी के आतंकवादी को मार गिराया। दूसरे आतंकवादी को इस बात का अहसास होते ही कि उसका साथी मारा गया वह अन्धाधुंध गोलीबारी करते हुए बच निकलने का प्रयास करने लगा। 
अपनी गहरी चोटों की परवाह न करते हुए कर्नल राय इस मुठभेड़ में डटे रहे और अपनी सैन्य टुकड़ी के पास पहुंच गए। उनकी टीम द्वारा जब तक दूसरे आतंकवादी का सफाया नहीं किया गया तब तक उसके बचने के मार्ग को अवरुद्ध करने के लिए वह प्रभावी रूप से लगातार गोलीबारी करते रहे।

कर्नल मुनीन्द्र नाथ राय ने कर्तव्य परायणता से ऊपर उठकर अभूतपूर्व नेतृत्व, साहस और वीरता का प्रदर्शन किया और आतंकवादियों से लड़ते हुए सर्वोच्च बलिदान दिया। कर्नल मुनीन्द्र नाथ राय के अनुकरणीय साहस, नेतृत्व और वीरता के लिए 27 जनवरी 2015 को मरणोपरान्त शांतिकाल के तीसरे सबसे बड़े सम्मान “शौर्य चक्र” से सम्मानित किया गया। आपको यह बताते चलें कि वीरगति से एक दिन पहले ही उनकी वीरता और साहस के लिए युध्द सेवा मेडल की घोषणा भारत सरकार द्वारा की गई थी।
कर्नल मुनीन्द्र नाथ राय के  परिवार में उनकी पत्नी श्रीमती प्रियंका राय, 03 बच्चे और छोटे भाई कर्नल धीरेन्द्र नाथ राय तथा उनका परिवार है। कर्नल धीरेन्द्र नाथ राय भी भारतीय सेना में सैन्य अधिकारी रह चुके हैं और वर्तमान समय में जनपद महराजगंज में जिला सैनिक कल्याण एवं पुनर्वास अधिकारी के पद पर पदस्थ हैं। 
कर्नल मुनीन्द्र नाथ राय की वीरता और बलिदान की याद में उनके पैतृक गांव डेढ़गांवा में एक स्मारक बनाया गया है तथा 39 गोरखा प्रशिक्षण केन्द्र वाराणसी में उनकी प्रतिमा लगायी गयी है। इनके वीरगति दिवस के अवसर पर इनके गाँव में एक भव्य सैन्य कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है, जहाँ पर इनके आसपास के गाँव के लोग आकर इनकी वीरता और बलिदान को नमन करते हैं ।
-हरी राम यादव (स्वतंत्र लेखक), अयोध्या , उत्तर प्रदेश  ph  no -  7087815074