प्यारी बेटी - कर्नल प्रवीण त्रिपाठी
माँ की आँखों के काजल सी, होती है हर बेटी,
घर की बगिया में कोंपल सी, होती है हर बेटी।
माँ की गर्भनाल से जिस दिन, बेटी बन जुड़ती है,
नज़र मातु की गर्भस्थल से, कभी नहीं हटती है।
एक अबोला और अनोखा, तब रिश्ता बन जाता,
ममता की डोरी से बँध कर, हर बेटी पलती है।
मरुथल में कजरारे बादल सी, होती है हर बेटी।।
माँ के पीछे पीछे घूमे, ढेरों बातें करती,
बाल सुलभ क्रीड़ाएँ करके, घर में खुशियाँ भरती।
बाबा जब भी घर में आते, दौड़ गोद चढ़ जाती,
अपनी अठखेली से उनकी, थकन सर्व नित हरती।
रुनझुन करती पग की पायल सी, होती है हर बेटी।।
जीवन की बारीकी माता, बेटी को सिखलाती।
संस्कारों सँग परंपरा की, घुट्टी उसे पिलाती।
निज अस्तित्व बनाये रखना, मूल मंत्र यह देती।
परिवारों को सदा सँभाले, रखना यह समझाती।
नेह भरे कोमल आँचल सी, होती है हर बेटी।।
अपनी राह बनाने खातिर, हर गुण खुद पनपाती,
नर-नारी में भेद करे जो, अंतर वह झुठलाती।
अस्मत और सुरक्षा पर तो, हमले हर दिन होते,
जोर-जुल्म करने वालों से, बेटी नित टकराती।
क्रुद्ध शेरनी घायल सी, होती है हर बेटी।।
- कर्नल प्रवीण त्रिपाठी, नोएडा, उत्तर प्रदेश