दोहे - डॉ. सत्यवान सौरभ

 

आज तुम्हारे ढोल से, गूँज रहा आकाश।
बदलेगी सरकार कल, होगा पर्दाफाश।।

छुपकर बैठे भेड़िये, लगा रहे हैं दाँव।
बच पाए कैसे सखी, अब भेड़ों का गाँव।।

नफरत के इस दौर में, कैसे पनपे प्यार।
ज्ञानी-पंडित-मौलवी, करते जब तकरार।।

नई सदी ने खो दिए, जीवन के विन्यास।
सांस-सांस में त्रास है, घायल है विश्वास।।

जिनकी पहली सोच ही, लूट,नफ़ा श्रीमान।
पाओगे क्या सोचिये, चुनकर उसे प्रधान।।

कर्ज गरीबों का घटा, कहे भले सरकार।
सौरभ के खाते रही, बाकी वही उधार।।

लोकतंत्र अब रो रहा, देख बुरे हालात।
संसद में चलने लगे, थप्पड़-घूसे, लात।।

मूक हुई किलकारियां, गुम बच्चों की रेल।
गूगल में अब खो गये, बचपन के सब खेल।।

स्याही, कलम, दवात से, सजने थे जो हाथ।
कूड़ा-करकट बीनते, नाप रहे फुटपाथ।।

चीरहरण को देखकर, दरबारी सब मौन।
प्रश्न करे अँधराज पर, विदुर बने वो कौन।।
- डॉ. सत्यवान सौरभ  333, परी वाटिका, कौशल्या भवन, 
बड़वा (सिवानी) भिवानी, हरियाणा – 127045,