मेरी कलम से - डा० क्षमा कौशिक

 

बोली से अपने बने क्षण में बने पराए,
बोली पर संयम नहीं कैसे प्रीत पगाय, 
अपनी अपनी ही कहे कैसे काम सधाए, 
अपनी कह,सुने सबकी नीति यही कहाय। 

नयन खंजन चंद्रमुख अधर पंखुरी गुलाब की,
वर्ण श्यामल शोभती मृदु रेख मंजुल हास की,
मोर पंख शीश शोभित पाग पीली श्याम  की,
ऐसी मनोहर मूरती हिय बसे सुंदर श्याम की। 
-  डा० क्षमा कौशिक, देहरादून, उत्तराखंड