मेरी कलम से - डा० क्षमा कौशिक

 

समय चक्र गतिशील है नियत है हर बात,
तू कहता मैने किया, नही सत्य यह बात !
हरि इच्छा के बिन नहीं हिलें तरु के पात,
हम तो साधन मात्र हैं करता है करतार ।
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तुम जो बढ़े हो दृढ़ व्रती, किंचित न पग को रोकना, 
आवें विविध बाधा बड़ी, डर कर न मुड़कर देखना !
समतल सरल हो पंथ तो, चलने में क्या आनंद है,
रण हो विषम, दुर्दम्य तो, ही जीत में आनंद है ।
- डा० क्षमा कौशिक, देहरादून , उत्तराखंड