दोहे - डॉ.सत्यवान सौरभ

 

जिसके दम पर है खड़ा, उनका आज मकान।
उसी नींव का कर रहे, वही रोज अवसान।।

अटकी जब हड्डी गले, खूब किया सत्कार।
निकल गया मतलब कहा, चलता हूं अब यार।।

भाई-भाई के हुआ,  हो जब मन में पाप।
कलियुग में होगा भला, कैसे भरत मिलाप।।

जब तक तन में सांस थी, कभी न पूछा हाल।
बाद आपके आ रहे, मिलने वो तत्काल।।

चार दिनों के ठाठ पर, क्यों करता अभिमान।
होंगे खाली हाथ जब, पहुंचेगा श्मशान।।

सत्यनिष्ठ मन ने रचे, सुख के पावन गीत।
मगर रहे वो जोड़ते, सदा अहम से प्रीत।।

डसने से पहले कभी, ना पाए हम भांप।  
निकलेंगे हमदर्द ही, छुपे आस्तीन सांप।।
- डॉo सत्यवान सौरभ, 333, परी वाटिका, कौशल्या भवन, बड़वा (सिवानी) भिवानी, हरियाणा – 127045,