"इस धरा की हर डगर मेरे लिए" विविध रंगों का गुलदस्ता (पुस्तक समीक्षा)
Utkarshexpress.com Deepti Shukla - अनिल शर्मा साहित्य जगत की जानी-मानी हस्ती हैं। इन्होंने अनेक एकल संग्रह प्रकाशित किए हैं। अनेक पत्र पत्रिकाओं में उनके आलेख, कहानी, गजल, गीत, कविता प्रकाशित होते रहते हैं। इनकी रचनाओं की सबसे बड़ी विशेषता यही है कि यह जीवन को बारीकी से अनुभूत करके लिखी गई हैं और हृदय पर सीधे दस्तक देती हैं। ये कई साहित्यिक समूहों एवं मंचों से जुड़े हुए हैं । जितना लालित्य से परिपूर्ण किताब का टाइटल है "इस धरा की हर डगर मेरे लिए " उतनी ही मनमोहक किताब की विषय वस्तु है। यह किताब काव्य एवं लघु कथा संग्रह है जिसमें प्रारंभ में काव्य रचनाएँ संग्रहित हैं और अंतिम भाग में कहानियाँ और लघुकथा हैं। किताब का शीर्षक जिस रचना पर बेस्ड है वह रचना अद्वितीय है-
" कुछ भी नहीं पास मेरे पर यूँ लगे
इस धरा की हर डगर मेरे लिए है..
भोर तारा फलक पर लगा अपना सा,
आह देखो हर सहर मेरे लिए है।"
स्वयं लेखक के शब्दों में -
"हर डगर मेरे लिए" यह मानसिकता है जो जीवन की सार्थकता तय करती है। आपके पास कितना है कितना नहीं है. कुछ है भी अथवा झोली बिल्कुल खाली है... इस गणित से बिल्कुल इतर आप भरे होते हो उल्लास से, उमंगों से, भरपूर आत्मविश्वास से, मन है कि सातवें आसमान को स्पर्श करने लगता है और लगने लगता है इस धरा की हर डगर मेरे लिए है।"
लेखकीय पढ़कर ही पाठक किताब की समृद्ध लेखनी का परिचय पा जाते हैं। अब तक इनके कई काव्य संकलन प्रकाशित हो चुके हैं जिनमें जीवन संगीत, खिड़की से अचानक बारिश आयी, नूर की बूँद कब से टपक रही है आदि प्रमुख हैं। इन्होंने जीवन के विभिन्न पहलुओं एवं विषयों को अपनी रचनाओं से स्पर्श करने का प्रयास किया है। जैसे -जिंदगी इम्तिहान लेती है, कीमत, सुन आज कुछ नया करते हैं, कोई अपना, चार दिनों की जिंदगी, थोड़ा सा, दर्पण, शायद यही कही हो, बंधन, एक बार फिर दिल चाहता है, एक लहर सी, पत्थर, गुलाम नजरिया, गीत फूलों से, दिमाग की सफाई, ब्रेनवाशिंग, मीत मेरे, रिश्ता या डोर, धुँवा और रोशनी, उषा काल, रात अभी आई नहीं, हवा, खूबसूरत, और सवेरा आदि।
रचनाओं में इतनी विविधता है कि किताब पढ़ कर लगता है कि इतनी वैरायटी वाली रचनाएँ शायद ही कहीं मिल सकें। यह एक अनमोल संकलन है जिसमें बहुत सारे रंग लेखक ने एक ही कैनवास पर उकेर दिए हैं। यदि इस संकलन को "गागर में सागर" कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।
हर रचना दिल को छूने वाली है।"जिंदगी इम्तिहान लेती है" नामक रचना में कवि ने जीवन की संजीदगी को वर्णित किया है जैसे-
" जिंदगी लाजमी इम्तिहान लेती है
मन की आवाज कुछ भी बोल देती है।
इस बोल को देखने का इम्तिहान है
क्या आंखें भावना समझ भी लेती हैं।
वो ही खरा उतरा है जिसने सुना है।"
"कीमत" नामक रचना में कवि ने प्राकृतिक दृश्य का बहुत ही मनभावन चित्रण किया है।
" मावस भी अब तो पूनम है
अमावस चांद खिला है।"
" मंजिलें दूर भी है मंजिले पास भी हैं" यह रचना स्वयं ही पाठक का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर लेती है। इस रचना में एक बहुत ही अनुपम सीख कवि ने दी जब वे कहते हैं
"यार मंजिलों की बात हर वक्त न किया करो
रास्ता भी तो अनि दिलचस्प हर पहर रहा।"
वाकई में सफर का भी आनंद लेना चाहिए ।मंजिल पाने के लिए इतना व्यथित होना सही नहीं। सफर के उतार-चढ़ावों को महसूस करना चाहिए । उन संघर्षों से ही जीवन निखरता है। यदि सफर यादगार हो जाए तो मंजिल स्वयं ही खूबसूरत बन जाती है। किंतु यदि सफर को नीरस तरीके से बोझ समझकर काटा जाए, तो मंजिल भले मिल ही जाए, क्या फायदा..? कुछ ऐसा ही संदेश कवि अपनी रचना के माध्यम से देना चाहते हैं।
कुछ नया करने की प्रेरणा देती हुई रचना है "सुनो आज कुछ नया करते हैं"
" फिर वही दिन
रात फिर वही
शाम भी वही
कट रहे यूँ ही पल छिन...
कुछ आज नया करते हैं दोस्त..
सीमाएं थोड़ी तोड़ते हैं.."
"नमी" नामक रचना में कवि ने बहुत ही बारीकी से प्रकृति की कराह को भी सुन लिया
इस रचना में कवि की वैचारिक प्रखरता और बारीकी से अवलोकन करने की क्षमता का स्वतः ही अंदाजा लग जाता है। जब कवि कहते हैं
"उजड़ते जंगल दरकते पर्वत हैं
किस विकास की देखो यह करवट है ।
मोहब्बतें लहर नदारद सी क्यों है
नमी सी पलकों में कि रहती क्यों है।"
एक रचना "खिलता रहा मुश्किलों में भी" रामधारी सिंह दिनकर की रचनाओं में परिलक्षित आशावादिता की याद दिला देती है-
"यूँ तो हजारों मुश्किलें थीं
पर जैसे कमतर उससे थीं
डटा रहा कि मुश्किलों में भी,
खिलता रहा मुश्किलों में भी।
हँसता रहा मुश्किलों में भी,
खेलता रहा मुश्किलों में भी।"
"गीत फूलों से" नामक रचना की तुकबंदी, शब्द विन्यास, वाक्य संयोजन इतना उम्दा है कि बरबस ही पाठक वाह कहने लगते हैं।
" पत्थर भी पिघले, गीत फूलों से गाने लगे,
गम के मारे भी देख उन्हें मुस्कुराने लगे।"
अब यदि कहानी संग्रह की बात करें तो प्रत्येक कहानी रोचक कथानक पर लिखी गई है। पात्रों का चयन यथार्थ के जीवन से ही हुआ है। पात्र इतने जीवंत से प्रतीत होते हैं जैसे हम उन्हें अपने आस-पास देख रहे हों। प्रत्येक कहानी जीवन से जुड़ी हुई है, जो किसी गंभीर मुद्दे को उठाती है अथवा मानव को कोई न कोई प्रेरणा दे जाती है। कहानी इतनी सहज, सरल एवं बोधगम्य संवाद शैली में लिखी गई है कि पाठक को तनिक भी अपने मन- मस्तिष्क पर जोर नहीं डालना पड़ता। प्रत्येक शब्द सीधा हृदय पर असर करता है ।संवादों और वार्तालापों के मध्य कहानी कब पूर्ण हो जाती है पाठक को एहसास ही नहीं होता। प्रत्येक कहानी में रूमानी एवं हृदय को छू लेने वाले नगमे भी सम्मिलित किए गए हैं, जिससे लेखक के संगीत प्रेमी होने का साक्ष्य मिलता है। यदि संपूर्ण पुस्तक की बात की जाए तो यह पुस्तक पाठकों के लिए एक रोचक एवं मनभावन पुस्तक है जिसे पढ़कर अवश्य ही उनका हृदय आनंद एवं खुशी से भर उठेगा। ऐसा मेरा विश्वास ही नहीं अपितु मुझे पूर्ण यकीन है यह संग्रह अवश्य ही लोकप्रियता के नए आयाम गढ़ेगा।
पुस्तक का नाम - इस धरा की हर डगर मेरे लिए
लेखक का नाम - अनिल शर्मा
प्रकाशक का नाम - कॉम्प्टेक पब्लिकेशन हाउस
पुस्तक सामग्री - काव्य एवं गद्य रचनाएँ
किताब का मूल्य - 150 / -
पृष्ठ संख्या - 106
समीक्षिका का नाम - प्रीति चौधरी "मनोरमा", जनपद बुलंदशहर, उत्तर प्रदेश