भयभीत संविधान- जसवीर सिंह हलधर

 

मैं भारत का संविधान हूं, लोकतंत्र मेरा परिचय है ।
अपराधी से ज्यादा मुझको ,लोभी नेताओं से भय है ।।

नेताओं से चोर लुटेरों के , देखो संबंध बने हैं ।
भारत भू के ऊपर देखो ,काले बादल घने घने हैं ।
और किसी पर दोष मढूं क्या, मुझको ख़ुद पर ही संशय है ।।
मैं भारत का संविधान हूं लोकतंत्र मेरा परिचय है ।।1

लोकतंत्र से लोक नदारत ,बेबस घायल तंत्र दीखता ।
जहां चुनावों की चर्चा हो ,मज़हब का ही मंत्र दीखता ।
मेरी हार सुनिश्चित इसमें झूंठे मक्कारों की जय है ।।
मैं भारत का संविधान हूं ,लोकतंत्र मेरा परिचय है ।।2

माली यदि अपने बागों की ,कलियां चरने लग जाएंगे।
पौधे यहां वृक्ष बनने से पहले मरने लग जाएंगे ।
किसलय पुष्प वार्ता करते ,अब उपवन का झरना तय है ।।
मैं भारत का संविधान हूं लोकतंत्र मेरा परिचय है ।।3

नांच रही है दरवारों में ,कविता राह मोड़कर अपनी ।
ताली औ गाली में सिमटी ,युग परवाह छोड़कर अपनी ।
बंद लिफ़ाफे में "हलधर" अब कैद हुई कविता लय है ।।
मैं भारत का संविधान हूं ,लोकतंत्र मेरा परिचय है ।।4
- जसवीर सिंह हलधर, देहरादून , उत्तराखंड