मेरी कलम से - डॉ. निशा सिंह
Aug 18, 2024, 22:45 IST
जो साथ मिलता नहीं मुझको शायरी का "नवल" ।
ग़म-ए-हयात से कब के बिखर गये होते।।
बचा अब नाम का ही राब्ता है।
ये कैसा वक़्त देखो आ गया है।।
मोबाइल जब से आया है घरों में।
न अपनो से कोई अब वास्ता है।।
अँधेरो में जो भी सितारा बनेंगे।
कभी वो नहीं सिंधु खारा बनेंगे।।
जो सिंचित "नवल" संस्कारों से हैं।
वही बाप मां का सहारा बनेंगे।।
-डॉ. निशा सिंह 'नवल' (लखनऊ)