मेरी कलम से - डॉ. निशा सिंह

 

दुश्मनी कितनी भी गहरी हो मगर।
पीठ  पीछे पर  न  कोई वार हो।।

नफ़रत की आग को हवा देते नहीं हैं वो ।
जिनको भी इश्क़ है यहाँ हिन्दोस्तान से।।

मुझे रस्मों रिवाजों के न बाँधों बंधनों में तुम।
तमन्ना है मेरी तारे फ़लक से तोड़ लाने की ।।

बेच  ईमां  को   ईमानदारी  करे ।
संत  बनकर वो चोरी चकारी करे।।
चाह में शोहरतों के है देखा "नवल"।
अब  क़लमकार भी चाटुकारी करे।
-डॉ. निशा सिंह 'नवल' (लखनऊ)