मेरी कलम से - डॉ. निशा सिंह

 

उसको रखके तिजोरी में दिल की 'नवल,'
इस ज़माने से  कितना छिपाना  कठिन।

नहीं दूर है मेरी मंज़िल कि मुझको,
जहां में तेरी रहबरी मिल गई।

चलो हम काम इक दूजे के आएँ।
जो हैं  भटके उन्हें रस्ता दिखाएँ।
रूलाना तो बहुत आंसा हैं लेकिन,
जो रोते हैं नवल  उनको  हंसाएँ।
- डॉ. निशा सिंह 'नवल', लखनऊ, उत्तर प्रदेश