मेरी कलम से - डॉ. निशा सिंह

 

कहीं भी दिन बिता ले ऐ परिंदा ।
ढ़ले सूरज कि घर आना तुझे है।।

तस्दीक़ करके ही किसी को वोट दीजिए।
हो लालची निकम्मी न सरकार देखिए।।

क्या सार है गीता का बताना है ज़रूरी।
मुरली की मधुर तान सुनाना है ज़रूरी।।
कल्याण मनुजता का हो ये जग बने सुंदर।
इसके लिए सदभाव जगाना है ज़रूरी।।

गिरेबाँ ख़ुद की अगर झांक लेते तो फिर वो । 
गुनाह  करने  से  पहले  सुधर  गये होते।।

रोटी की आस शहर तलक खींच लाई पर । 
छूटा न मोह गांव के कच्चे मकान से।।
- डॉ. निशा सिंह 'नवल', लखनऊ, उत्तर प्रदेश