गीतिका - मधु शुक्ला

 

ज्ञान  दीपक  से  सदा  अज्ञान  तम  हरते  गुणीं,
जिंदगी का पथ सुसज्जित बुद्धि से रखते गुणीं।

देह बल, धन हो नहीं सकता सहायक हर जगह,
ज्ञान  की  आराधना  से  ही  विजय गहते गुणीं।

हर सदन रहता सुरक्षित अनुभवों के ज्ञान से,
जिंदगी  की  पाठशाला  में  यही पढ़ते गुणीं।

साधु  संतों  ने  हमेशा  ज्ञान  को  ताकत कहा,
मित्रता  कर  ज्ञान  से  हर  क्षेत्र में हँसते गुणीं।

रह नहीं सकता कभी संतोष मन में ज्ञान बिन,
कंटकों  से  धैर्य  द्वारा  ही  सदा  लड़ते  गुणीं।

है  वही  धनवान  जग  में पास जिसके ज्ञान है,
फल सुयश सम्मान का सद्कर्म से चखते गुणीं।
— मधु शुक्ला, सतना, मध्य प्रदेश .