गीतिका - मधु शुकला 

 

भावना बलिदान की हित चाहती मनमीत का,
त्याग ने ऊँचा रखा है शीश हरदम प्रीत का।

भावना यह बलवती है देश प्रेमी के हृदय,
दे सदा उपहार अपने राष्ट्र को वह जीत का।

कामना माँ के हृदय में यह सदा पलती रहे,
हर्ष से वह थाम पाये हाथ ममता रीत का।

दृष्टि गोचर हो रही सुख शांति उस परिवार में,
बोध रहता है जहाँ संवेदना की नीत का ।

राष्ट्र वह अर्जित करे सम्मान सारे विश्व में, 
हो जहाँ पर बोलबाला एकता के गीत का।
 — मधु शुक्ला, सतना, मध्यप्रदेश