गीतिका - मधु शुक्ला

 

आँख की किरकिरी बन गईं शादियाँ,
मौन व्रत धारतीं अब नहीं नारियाँ ।

जिंदगी  की  कमाई  लुटाते  पिता,
किन्तु सुख दे न पातीं उचित डिग्रियाँ।

हैं दुखी माँ पिता आज संतान से,
नींव में हैं दबीं आपकीं नीतियाँ।

त्याग का बोध संतान यदि कर सके,
हम झुमायें सदा मेल कीं चाबियाँ।

प्रेम के मोल को यदि समझ लें सभी,
हर सदन में मिलें नेह कीं झांकियाँ।

अति कहीं रिक्तता दोष संसार का,
एकता, प्रेम पर डस रहीं रोटियाँ।

ज्ञान से नम्रता प्राप्त करता मनुज,
हर कदम पर नहीं चाहता तालियाँ।
— मधु शुक्ला, सतना, मध्यप्रदेश