गीतिका - मधु शुक्ला

 

दीन निर्बल को सदा जो जन सतायें,
मंदिरों के व्यर्थ वे चक्कर लगायें।

देव महिमा से नहीं अनभिज्ञ कोई,
प्रीति फिर भी छल कपट से सब निभायें।

शुचि हृदय की प्रार्थनाएं ईश सुनते,
ज्ञान, धन, अभिमान पर जन तज न पायें।

त्याग, करुणा, प्रेम, सेवा ईश को प्रिय,
संत इनको ही सखा अपना बनायें।

सोचिए ईश्वर हमें क्यों जग दिखाया,
हम नहीं उद्देश्य ईश्वर को भुलायें।
— मधु शुक्ला, सतना , मध्यप्रदेश