ग़ज़ल (हिंदी) - जसवीर सिंह हलधर
Jul 6, 2024, 22:33 IST
नहीं है आज सिर पे ताज पर कल तो हमारा है ।
चलें देखें समंदर का कहां दूजा किनारा है ।
सजी मंदिर कि मूरत बोल सकती है अगर चाहो ,
लगे उसको किसी ने आज अंदर से पुकारा है ।
नुकीली धार पानी की जमा पर्वत हिला देती ,
यकीं ना हो तो देखो गंग को किसने उतारा है ।
ज़रा सी चोट लगती है कलेजा मात का हिलता ,
अनौखा जोड़ ममता का मिला मां को पिटारा है ।
कभी सोचा नहीं हमने पिताजी छोड़ जाएंगे ,
शजर हांथों लगाया जो वही अब तो सहारा है ।
गिने क्या पैर के छाले कभी अपने बज़ुर्गों के ,
जलाकर हाथ अपने आग में हमको सँवारा है ।
लपट आने लगी आतंक की बहती हवाओं में ,
लिए खंजर खड़ा जो सामने किसका दुलारा है ।
अदीबों में हुई हलचल ग़ज़ल कहने लगा "हलधर",
कलम में ओज करुणा का सही दिखता नजारा है ।
- जसवीर सिंह हलधर , देहरादून