गज़ल - अनिरुद्ध कुमार
Sep 6, 2024, 22:29 IST
बोल कतना दर्द झेली जिंदगी,
लागतावे जान लेली जिंदगी।
बेसहारा जी रहल बानी इहाँ,
का पता ई खेल खेली जिंदगी।
साथ में केहू कहाँ जे थामले,
रात दिन तड़पे अकेली जिंदगी।
जख्म रोजे दे रहल बावे नया,
अब कहाँ लागे सहेली जिंदगी।
दिल जराई मन मसोसीं रात में,
बइठ झाँकेनी हथेली जिंदगी।
बेसहारा बेकदर अंजान जग,
तीत लागेला करेली जिंदगी।
दूर तक देखीं तलाशी हरघड़ी,
नीक ना लागे चमेली जिंदगी।
राह कतरा के चली बेजान से,
छोड़ दे पीछा नवेली जिंदगी।
'अनि' कराहेले सदा बेचैन हो,
का कहीं गजबे पहेली जिंदगी।
- अनिरुद्ध कुमार सिंह
धनबाद, झारखंड