ग़ज़ल - विनोद निराश
Nov 4, 2024, 22:52 IST
हाले-दिल उन्हें बताते कैसे ?
इश्क़ था उनसे जताते कैसे ?
मुफलिसी से ही रहे वाबस्ता ,
ये आँख उनसे मिलाते कैसे ?
दिल तो पहले ही दे चुके थे ,
जां बची थी वो गंवाते कैसे ?
उनींदी आँखों में नींदें कहां थी ,
हंसीं ख्वाब हम सजाते कैसे ?
गर न मिलते तुमसे जाने-वफ़ा ,
इतना हसीन धोखा खाते कैसे ?
कैसे हुई ज़िंदगी से बहारे खफा ,
रुखसती के बाद बताते कैसे ?
देख कर हाथ में हाथ गैर का ,
तुझे निराश गले लगाते कैसे ?
- विनोद निराश , देहरादून
हाले-दिल - दिल का हाल / ह्रदय स्थिति
मुफलिसी - गरीबी / दरिद्रता / निर्धनता
वाबस्ता - जुड़ा हुआ / बँधा हुआ / संबद्ध
रुखसती - विदाई