ग़ज़ल - जसवीर सिंह हलधर
Aug 9, 2024, 22:54 IST
क्यों खोजते फिरते उसे झूठी हयात में ,
पहचान लो उसका ठिकाना है वफ़ात में ।
आंखें करोगे बंद तो जल्बा दिखाएगा ,
ईमान का पैगाम यदि होगा रकात में ।
कैसे लिखूं उस हुस्न की तारीफ़ में ग़ज़ल ,
उस रंग की स्याही नहीं मेरी दवात में ।
बारूद इतना घुल चुका नदियों के आब में ,
तेज़ाब सा पानी हुआ दजला – फरात में ।
पत्थर हुआ है आदमी मज़हब की कैद में ,
अब आईने रोने लगे कौमी जमात में ।
दीदार की कैसी रखी है शर्त यार ने ,
जाना मुझे मिलने उसे अंधी बरात में ।
खाली पतीला देख के महमान ने कहा ,
आटा नहीं होगा मियां इसकी परात में ।
मत ख्वाब में देखा करो ‘हलधर’ बड़े महल ,
पैबंद पहले टांक लो अपनी कनात में ।
- जसवीर सिंह हलधर , देहरादून