गजल - मधु शुक्ला

 

आदमी की उम्र बढ़ पाती कहाँ है,
मृत्यु मनचाही कभी आती कहाँ है।

आज सबको हो गया है प्रिय मुखौटा,
बात अब व्यवहार महकाती कहाँ है।

धन कमाना हो गया जब जरूरी,
प्यार से माँ लोरियाँ गाती कहाँ है।

बिक रहे बाजार में व्यंजन विदेशी,
जीभ अब घर के बने खाती कहाँ है।

आजकल सम्मान पहले सा न मिलता,
.मगर लेखनी अब सत्य दर्शाती कहाँ है।
— मधु शुक्ला, सतना, मध्यप्रदेश