गजल - रीता गुलाटी

 

दोस्त से तब हम मिलें भी खूब थे,
बात पर उसकी हँसे भी खूब थे।

जिंदगी में हादसे होते बहुत,
पर मिले कुछ रास्ते भी खूब थे।

यार बैठा बात करता प्यार की,
हो रहे शिकवे गिले भी खूब थे।

नाज नखरे वो करे हरदम बहुत,
यार के  नखरे बड़े भी खूब थे।

दर्द मेरा वो कभी समझा नही,
यार तेरे कहकहे भी खूब थे।

छटपटाने अब लगी थी चाँदनी,
चाँद ने अब गम दिये भी खूब थे।

यार से*ऋतु दूर देखो हो गयी,
खोजते  तो रास्ते भी खूब थे।
- रीता गुलाटी ऋतंभरा, चंडीगढ़