ग़ज़ल - रीता गुलाटी

 

अश्क को हाय अब दिखाने आया हूँ,
खुशी वो सारी अब लुटाने आया हूँ।

सूनी आँखों मे थे खिलते सपने भी,
हकीकत दुनिया की बताने आया हूँ।

दर्द हजारों भी दुनिया मे मिलते हैं,
निजात पा ले,ये समझाने आया हूँ।

कौन सुन पाया जग में दुख पराये का,
दर्द सहकर भी गुनगुनाने आया हूँ।

धोखा नजरों का हमको दुख देता है,
बिसरा के दर्द मुस्कुराने आया हूँ।

लड़ रहे जो दुखोँ से अपनी गरीबी में,
दुख उनके भी आज  हटाने आया हूँ।

दिखे जमाने मे झूठ का बोलबाला है,
सच की राह पर चल बतलाने आया हूँ।
- रीता गुलाटी ऋतंभरा, चंडीगढ़